श्रीमद भगवद गीता : अध्याय ३

इस अध्याय का आरम्भ अर्जुन के प्रश्न से होता है। अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण से व्यक्त करते है कि आप मुझे युद्ध रूपी घोर कर्म में क्यों लगाते हो? इस प्रश्न का उत्तर देने के लिये भगवान श्रीकृष्ण दो मुख्य कारण बताते है।
सर्व प्रथम – जीवन निर्वाह के लिये मनुष्य कार्य करे बिना नहीं रह सकता। जो मनुष्य अपना कल्याण की कामना रखता है, उसको कार्य करना अनिवार्य है
दूसरा – मनुष्य का जन्म इस सृष्टि चक्र में अपना योगदान दने के लिये हुआ है, जो उसका मनुष्य धर्म है। अतः भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को अपना मनुष्य धर्म पालन करने के लिये कार्य करने के लिये कहते है।
भगवान श्रीकृष्ण सृष्टि चक्र में होने वाली क्रियाओं को एक महान यज्ञ की संज्ञा देते है और कहते है कि हर मनुष्य को इस यज्ञ में अपनी मनुष्य धर्म पालन रूपी आहुति देना आवश्यक है।
मनुष्य धर्म पालन के साथ, अपना कल्याण किस प्रकार करे, इस का भी भगवान श्रीकृष्ण इस अध्याय में वर्णन करते है।

श्लोक ०१ से श्लोक ०९ - तत्व ज्ञान साधना अथवा कर्मों में श्रेष्ठ क्या है और कल्याण किस में है ?

श्लोक २० से श्लोक २६ - श्रेष्ठ पुरुष को लोकसंग्रह हेतु भी योगस्थित हो यज्ञ का पालन करना चाहिये

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष

धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ है। यह चार पुरुषार्थ को करना ही मनुष्य जीवन का उदेश्य है। उद्देश्य इसलिये है क्योंकि इन चार पुरुषार्थ को करने से ही मनुष्य का कल्याण है। धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, का अर्थ क्या है? यह पुरुषार्थ करने से मनुष्य का कल्याण किस प्रकार है? धर्म धर्म का अर्थ है कर्तव्य। श्रीमद […]

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